सतयुग में साधू मुनि, कमंडल और मालाएं लेकर तपस्या आरम्भ करते थे,कलयुग में हमारे राजा भैया अपने लैपटॉप और इन्टरनेट को ले के बैठे हुए थे।
हालाकि हम रोज़मर्रा में तो मेनका बनकर उनका तप भंग नहीं करते, पर आज सवाल वीकेंड की ओल्ड मोंक के जुगाड़, यानी की, उधार का था।
"राजा भैया, अरे सुनिए ना!"
"अबे का है बुडबक? देखे नहीं का कि हम फेसबुक कर रहे हैं?"
अब ये शौक भैया को नया ही चढ़ा था। पहले तोह ऑरकुट पे 'Fraandship' कर के ही खुश हो लिया करते थे, पर जबसे भैया को मालूम पड़ा कि आजकल की सारी युवा जनता ऑरकुट से फेसबुक पर आ गयी है, तो भैया जी ने भी उतनी ही तेज़ी से हमसे अपनी प्रोफाइल बनाने की सिफारिश की जितनी तेज़ी से आईएस ऑफिसर नक्सल-प्रभावित इलाकों से तबादले की अर्जी डालते हैं|
अब मुफ्त में किसी के घर पे रहने की एवज में इतना तो कर ही सकते हैं ना? बस हमने रजा भैया के पैर पे कुल्हाड़ी मार दी।
फिलहाल, हम इंतज़ार में पीछे बैठ गए, की भैयाजी उठें और अपनी तपस्या और हमारी समस्या दोनों समाप्त करें।
१० मिनट गुज़र गए और भैया जी स्क्रीन को निहार तो ऐसे रहे थे मानो जैसी कोई बालक फर्स्ट टाइम किसी व्यसक अर्थात एडल्ट वेबसाइट का दीदार करता हो। अब ऐसी चीज़ों में किसे दिलचस्पी नहीं होती? हम भी उठ गए, "क्या भैया? सनी भाभी की नयी फिल्म आई है क्या? लिनक्स वाले फोल्डर में डाल दो ना, हम भी देख लेंगे। आखिर जो तेरा है वो मेरा है!"
"अबे चूतिये! साले औरत का सम्मान करना सीखो! किराया लेना शुरू कर दें क्या?"
"अरे नहीं भैया, माफ़ करो, भाभी बोले इसीलिए तो, और हम तो बॉलीवुड वाली फिल्म की बात कर रहे थे। खामखाँ बिफर रहे हो!"
हमारी नज़र गयी स्क्रीन पे; भैया की 'औरत का सम्मान करो' वाली बात, हमारे लिए वैसे ही क्लू थी, जैसे शर्लाक वाटसन को क्लू देता है। हम भी माजरा समझ लिए।
"क्या भैया? १० मिनट से एक ही प्रोफाइल खोल के बैठे हो, कंप्यूटर अटक गया है या नज़र?"
बस, भैया हो गए कश्मीरी सेब और संटी खाए पिछवाड़े की तरह लाल, "काहे मज़ाक उड़ा रहे हो गुड्डू। हमारी उम्र ही कहां रही।"
बात तो सही थी, भैया की उम्र ३२ थी। नाम राजा पर बैंक बैलेंस, ३२००० हज़ार भी नहीं। अब आप सिर्फ हम जैसे कमीनों का पालन-पोषण करने को दोष नहीं दे सकते। भैया हमको चुतिया-चपडघनाति जो भी कहें, पर १० साल आईटी में काम करने पे भी अगर onsite नहीं गए तो आप ही कहो कौन है असली वाला? अपना काम छोड़-छाड़ कर, ऑफिस की सारी लड़कियों के काम निपटाने हेतु NGO कार्यकर्ता बनेंगे तो साला न्यू यॉर्क क्या नागोथाने भी न भेजे कोई मेनेजर तुम्हे!
लेकिन कसम पैदा करने वाले की, हम हरामी ज़रूर हैं पर नमकहराम नहीं, चढ़ा दिए भैया को,"भाभी जी को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे क्या?"
"अबे गधा समझे हो क्या हमें? एक्को म्यूच्यूअल फ्रेंड नहीं है और हम फ्रेंड रिक्वेस्ट भेंजेगे क्या? चुतिया लगना मंज़ूर है, चेप नहीं भाई।"
"अरे पर भैया, इ हैं कौन?"
"नयी टेस्टर आई है बे, दिल्ली से!नीवी नाम है। पता कर लिए हैं, हमारे ही गोत्र की है। अम्मा भी राज़ी हो जायेंगी। प्रीती की इसी कारण थोड़ी प्रॉब्लम हो गयी थी न अम्मा को। अच्छा हुआ हमारे कुछ करने से पहले ही, वो मेनेजर ही पटा ले गया उसको।"
"और मेनेजर के माल पे हाथ डालते तो रेटिंग भी जाती भैया।"
"अबे घंटा! साले के कंप्यूटर का पासवर्ड मालूम है हमको। मेनेजर की माँ-बहिन छोड़ो, पूरे खानदान को एक कर देते!"
"बिगडो मत भैया। हमें मालूम है बोंड हो तुम। पर एक डाउट है|"
"बेझिझक बको साले।"
"भैया जी, गोत्र तो ठीक है, पर आप डेवलपर हो, भाभी जी टेस्टर। बनेगी क्या? घर में भी नोक-झोंक न हो जाए?"
"अबे ससुर के नाती, पूरी accenture में साला क्या एक ही प्रोजेक्ट है? दुसरे में चले जायेंगे हम। अब प्यार-मोहब्बत में इतना सैक्रिफाइस तो बनता है।"
"भैया, कहीं और चले गए तो नजर कैसे रखोगे। आजकल के मेनेजर बहुत ठरकी हैं।"
"अबे तो हम क्या कल के बच्चे हैं क्या?और साले, बकचोदी काहे कर रहे हो? दूकान सजी नहीं, तुम पकवान अभी से बेच रहे हो? कुछ करना ही है तो उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजो, फिर हम भेजेंगे। अभी प्लेयिंग हार्ड टू गेट करते हैं।"
हम भी बोल दिए, जी-हुज़ूर। पर मालूम तो था ही हमें की भैया को प्लेयिंग-हार्ड-टू-गेट करने की ज़रूरत नहीं, क्यूंकि उनका कुछ होने की गुंजाइश उतनी ही थी जितना भारत में एक भ्रष्टाचार-मुक्त सरकार बनने की।
अब आप सोचोगे की हम कैसी प्रवृति के इंसान है कि उन्हें झूठों उम्मीद बंधाते रहते हैं। पर हमारे पास वजह है| अब आपको चाहे लगे की भैयाजी छिछोरे हैं, पर वास्तविकता ये है कि वो केवल एक आशिक-मिजाज़ इंसान हैं। पर साली इस दुनिया ने उनके दिल को एक होटल का दरबान बना के रख दिया है। भैयाजी झुक-झुक के सलाम ठोकते हुए दरवाज़े खोलते रहेंगे, लोग आते जाते रहेंगे, ज्यादातर नज़रंदाज़ कर देंगे, कुछ मुस्कुरा देंगे, एक-आध बख्शीश भी दे देंगे, पर कोई कभी रुकेगा नहीं। हम सब समझते थे, पर भैयाजी की समझ से ये बातें परे थी क्यूंकि आदमी दुनिया को वैसे ही देखता है जैसा वो खुद होता है।
हमें फट्टू ही कह लीजिये की हमें ये बात भैयाजी को कहने से ज्यादा आसान उनकी उम्मीद कायम रखना लगता था।
- उम्मीदन-शेष-भाग-जल्द