Thursday, August 2, 2012

उम्मीद की आस

जब पत्ते सब झडे,उम्मीद बचाई सीने में|
अब पेड़ ही न रहे खड़े,तो क्यों आस रहेगी जीने में|

जब अरसों बारिश नहीं बरसी,उम्मीद बचाई सीने में|
अब आँखें आंसुओं को भी तरसी,तो क्यों आस बचेगी जीने में|

जब खाली हुए शराब के प्याले,उम्मीद बचाई सीने में|
अब मैखाने पे पड़ गए ताले,तो क्यों आस रहेगी जीने में|

जब ज़माने से मुंह मोड़ा था,उम्मीद बचाई सीने में|
अब जो तुमने साथ छोड़ा है,तो क्यों आस रहेगी जीने में|

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